Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part

[wp-rss-aggregator feeds="health-tips"]


[wp-rss-aggregator feeds="contact-dunia"]

तेरी-मेरी आशिकी का Part- 22 पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

उस घटना से उबरने में हमारे फैमली को कई साल लग गये। अगर पापा जीवित होते तो शायद अर्जून भैया को अपनी पढ़ाई बीच में नही छोङना पड़ता। खैर! हम अपनी पुरानी बात को छोड़ कर अपनी कहानी पर आते हैं।

देवांशु थाने से छुटने के बाद सीधा अपने दोस्तों से मिला। देवांशु को देखते ही उसके पास आकर एक दोस्त ने बोला, “देवांशु यार, ये सब क्या हो गया ? हमें उम्मीद नही थी कि तुम्हें जेल तक जाना पड़ सकता है।”

[wp-rss-aggregator feeds="mixture-potlam"]

दूसरी दोस्त कहता है,” यार हम लोग तो दिपा के पीछे पड़े थे ना फिर इन सब चक्करों में हम लोग कैसे पहुंच गए! यार ये छात्रवृत्ति घोटाला क्या है? और तुम प्रिंसिपल को इन सब कामों में सच में साथ दे रहा था?”

यह सब सुनकर देवांशु के चेहरे गुस्से से लाल हो रहा था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि बस इन दोनों को थप्पड़ जड़ देगा।

“हू…! हां तुम सही कह रहे हो, हम तो दीपा के पीछे पड़े थे। साला उससे पहली नजर में ही प्यार हो गया था इसलिए उसे इंप्रेस करना चाहते थे, उससे दिल की रानी बनना चाहते थे। मगर साली कुत्तिया निशांत के साथ मिलकर मुझे जेल भेजवा दी।” देवांशु दांत खींचते हुए बोला।

“भाई इन सब बात को छोड़ो पहले चलो कहीं घूम कर आते हैं। देवांशु! इन 2 दिनों से मुंड काफ़ी खराब हो रखा है।” 

“जब तक मैं इस बेज्जती का बदला ना ले लूँ तब तक मेरा मुंड वैसे भी सही नहीं होने वाला है।”

“तो क्या करें अब?” दूसरे दोस्त ने कहा।

“बर्बाद!”

“मतलब?”

“मतलब वैसा ही कुछ जैसा पिछली दफा उसके भाई को फोटो भेज कर किया था। मगर इस बार कोई फोटोशॉप वाली फ़ोटो नही बल्कि लाइव वीडियो होगा।  हा! हा! हा! हा!” पहले दोस्त ने कहा।

 “शाबाश! काफ़ी समझदार निकले।” देवांशु अपने दोस्त के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

“मगर वीडियो…! ये सब होगा कैसा ?” दूसरे दोस्त ने कंफ्यूज होते हुए पूछा।

“बस तू देखता जा…।” यह बोलकर देवांशु वहां से चला जाता है। उसके पीछे दोनों दोस्त हो लेते हैं।

इस मामले के बाद मेरे घर में थोड़ी बहुत मुझ पर पाबंदी लगा दी गई थी अब मैं शाम तक बाहर नहीं रहता था और कॉलेज भी समय से जाता था और समय से पहले ही आ जाया करता था। प्रिंसिपल सर और मुझ में थोड़ी मनमुटाव सी हो गई थी। लेकिन हां! उस छात्रवृत्ति घोटाले के मामले उजागर करने के बाद कॉलेज में मेरी अच्छी पहचान हो गई थी। 

छात्र नेता के नाते वहाँ किसी भी छात्र का कोई भी प्रॉब्लम होती थी तो वह सब लोग मेरे पास जरूर आते थे और मैं कोशिश करता  कि हर किसी के प्रॉब्लम को सॉल्व करूँ।

देवांशु से झगड़े के अब लगभग 2 से ढाई महीने हो चुके थे। और मुझे लगने लगा था अब सब कुछ नॉर्मल हो गया है। अब कॉलेज में देवांशु का आना जाना भी बहुत कम हो गया था। वह हमेशा अपने दोस्तों के साथ सड़कों पर ही दिखता था।

एक दिन अचानक शाम में दीपा के फोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आया।

“हेलो… कौन?” दीपा फोन रिसीव करते हैं बोली।

” हेलो दीपा …. मैं देवांशु बोल रहा हूँ।”

“तुम!  … तुमने फोन कैसे किया?”

“प्लीज पहले शांत हो कर सुन लो, गुस्सा बाद में कर लेना।”

“बोलो । क्या बोलना चाहते हो?”

“सबसे पहले मैं तुमसे माफी मांगता हूं उस दिन जो कुछ हुआ था उसके लिए मुझे माफ कर दो और मैं निशांत से भी माफी मांगना चाहूंगा।  मैं मानता हूं छात्रसंघ चुनाव के वक्त मैं कुछ ज्यादा ही पर्सनल और  जज्बाती हो गया था। मैं प्रिंसिपल सर के बहकावे में आकर कुछ ज्यादा ही बहक गया था।”

देवांशु द्वारा अचानक से कॉल करके दीपा से माफी मांगना, यह बात दीपा को कुछ हजम नहीं हो रही थी। क्योंकि देवांशु का जिस तरह के व्यवहार और इमेज बना है कॉलेज में उसके हिसाब से यह कॉल करने वाली हरकत अविश्वसनीय था।

दीपा बात को अच्छी तरह से समझ रही थी कि देवांशु जरूर कुछ  नया और  बड़ा लफड़ा करने वाला है। वरना इस तरह से मासूम बन करके तो कॉल कभी नहीं करने वाला है।

देवांशु फोन पर काफी चिकनी – चुपड़ी बातें कहीं और वह अपनी सभी गलती के लिए माफी मांगा जिससे देवांशु द्वारा दीपा और मुझे परेशानी हुई हो।

*

भैया ऑफिस में परेशान थे। वह कभी कांट्रेक्टर को फोन लगा रहे थे तो कभी उसके सेक्रेटरी को। उन्हें समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर अब  करे तो क्या करें! क्योंकि जो कांट्रैक्ट उन्हें मिली थी टाइल्स  बनाने और सप्लाई करने के लिए वो लोग अब माल तैयार होने के बाद लेने से इंकार कर रहे थे।

माल तैयार करने में भैया अपनी पूरी जमा पूंजी के साथ कुछ लोन भी बैंक से निकाल लिए थे क्योंकि यह काफी बड़ा कॉन्ट्रैक्ट था। कॉन्ट्रैक्ट के वक्त तय राशि का मात्र 20% पैसे ही एडवांस जमा किया गया था। जिसके कारण अगर वह माल तैयार होने के बाद नहीं लेते हैं तो हमारी कंपनी को काफी नुकसान होने वाला था।

काफ़ी मिनते, रिक्वेस्ट और कोशिश करने के बाद भी कॉन्ट्रैक्ट देने वाला व्यक्ति माल लेने को तैयार नहीं हुआ । जिसके कारण हमारी फैमिली फिर से बर्बाद होने की कगार पर आ गई।

काम बनता ना देख भैया ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और भैया ने कांट्रेक्टर पर केस फाइल किया। भैया से कॉन्ट्रैक्ट का डॉक्यूमेंट भी कहीं खो गया  था। केस कई महीनों तक चलता रहा जिसकी वजह से हमारी कंपनी को और  हानि होता रहा। क्योंकि हमारी कंपनी में  ना तो माल तैयार करने के लिए पैसे बचे थे और नहीं कर्मचारियों को पेमेंट के लिए।

अब हमारी फैमिली का फाइनेंशियल हालत दिन- प्रतिदिन बदतर होती जा रही थी। अब मैं कॉलेज में ज्यादा ना जाकर भैया के साथ उनके कामों में हाथ बटाने लगा था।

भैया को अब तक यह समझ में नही आयी थी कि आखिर कॉन्ट्रैक्टर बना हुआ सामान  लेना क्यों नहीं चाह रहा है I लेकिन मुझे पता था इन सब के पीछे देवांशु के पिता जगन्नाथ मिश्रा का हाथ है मगर वह यह सब क्यों कर रहा है यह मुझे समझ में नहीं आ रही थी I 

कभी-कभी लगता शायद देवांशु के साथ झगड़े का बदला उसके पिता ले रहा है। मगर दूसरे ही पल लगता कि वह कोई इतनी बड़ी लड़ाई नही थी जिसके लिए कोई इंसान अपना सब कुछ छोड़ कर मुझे बर्बाद करने के लिए यह सब कर सकता है।

 हम शाम को अपने घर पर भाभी ,माँ और दीपा  के साथ बैठे हुए थे। उस दिन केस का फाइनल फैसला आने वाला था। भैया कोर्ट में ही थे। हम लोग बैठकर  भगवान से केस जीत जाने की प्रार्थना कर रहे थे।

लगभग शाम 5 बजे भैया कोर्ट से वापस आएं। उनके चेहरे के हाव-भाव से ही हम लोगों की शंका हो गया था मग़र उन्होंने जो कहा उसे सुन कर हम सब ……..।

Continue –>

Next Episode  READ NOW  (Coming Soon…..)

 All rights reserved by Author



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *