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Author – अविनाश अकेला
तेरी-मेरी आशिकी का Part- 23 पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
लगभग शाम 5 बजे भैया कोर्ट से वापस गए थे। उनके चेहरे के हाव-भाव से ही हम लोगों को शंका हो गया था मग़र उन्होंने जो कहा उसे सुन कर हम सब ख़ुशी से उछल पड़े क्योंकि हम लोग केस जीत गये थे। और कांट्रेक्टर माल को पूरी दाम के साथ-साथ मुकदमा और अन्य हानियों के भरपाई के लिए पुरे दाम के 10 % और अधिक रु मुआवजा के तौर पर देने को कहा गया.
भैया ने बताया , “कोर्ट में कांट्रेक्टर और जगन्नाथ मिश्रा के चेहरे देखने लायक थी. दोनों पसीने से तर हो रहे थे.”
यह बात सुन कर सभी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी। मां अर्जुन भैया के पास आते हुए बोली, “मुझे भारतीय कानून और ऊपर वाले पर पूरा भरोसा था कि जीत सच्चाई की होगी यानी कि जीत हमारी होगी।”
आदिति भाभी उनके हाथ से बैग लेती हुई बोली, “बैग मुझे दे दो । आप जाकर हाथ मुंह धो लीजिए मैं आपके लिए खाना निकालती हूँ।”
“नहीं। मैं नहीं आऊंगा। अभी तो फिलहाल जीत की खुशी से ही पेट भरा पड़ा है।”
सभी लोग एक साथ हंस पड़े हैं। तभी निशांत कहता है, “यह कांट्रेक्टर कब तक माल यहां से डिलीवर करवा लेगा और पेमेंट कब तक देने के लिए आदेश है?”
“मैं तुम लोगों को एक इंपॉर्टेंट बात बताना ही भूल गया कोर्ट ने 2 दिन के अंदर पेमेंट करने का।आदेश दिया है और एक सप्ताह के अंदर सारे माल का डिलीवरी करवा लेने को बोला है। अगर वह माल ले जाने में एक सप्ताह से अधिक समय लेते हैं तो उसे पूरे माल पर 2 परसेंट का और चार्ज देना होगा।”
खुशी जाहिर करती हुई आदिति कहती है, “अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है।”
“हां। जो जैसा करता है वह वैसा ही भरता है।” निशांत ने कहा।
अर्जुन अपना शूज निकाल रहा होता है और उसके मां बगल के कमरे में जाकर अपने कपड़े को कवड में रख रही होती है। आदिति किचन में जाकर खाने को गर्म करने लगती हैं। तभी निशांत अर्जुन से पूछता है, “अर्जुन भैया मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही है कि मेरा और देवांशु की लड़ाई इतनी बड़ी लड़ाई तो नहीं थी , जिसके लिए उसके पिता अपने सब कुछ छोड़ कर मेरे पीछे पड़ सके। और इतनी भी बड़ी लड़ाई नहीं थी कि उस लड़ाई के बदले के लिए मेरी पूरी फैमिली को परेशान किया जा सके। फिर आख़िर जगन्नाथ मिश्रा इतना क्यों कर रहा था ?”
अर्जुन गहरी सांस छोड़ता हुआ कहता है, “यह बात मुझे भी समझ में नहीं आ रही है। तुम लोग के नार्मल से झगड़े थे जो यह कॉलेज में होते रहते हैं। इसके लिए इतनी बड़ी चाल चलना, कंपनी को बर्बाद करने के बारे में सोचना और कांट्रेक्टर को भगा देना। मुझे भी अजीब लग रहा है।”
“भैया, मुझे लगता है यह प्रिंसिपल के मिलीभगत चाल भी हो सकता है। हो सकता है मैंने स्कॉलरशिप्स बच्चों को दिलवाया है जिसके वजह से उसे परेशानियों का सामना करना पड़ा हो। उसी का वह बदला को दुख पहुंचा कर लेना चाहता हो।”
“नहीं छोटे। वो ये सब नहीं कर सकता है। वह बच्चों के लड़ाई को बच्चे तक ही सीमित रखेगा और हां तुमने जो स्कॉलरशिप दिलवाई है इससे जो उन पर करप्शन का दाग लगा था , वह भी इतना बड़ा कदम उठाने के लिए प्रिंसिपल को उत्साहित नहीं करेगा। कुछ और ही लोचा मुझे लगता है।”
बगल के कमरे में कपड़े रखते हुई अर्जुन की मां यह सारी बातें सुन रही थी। जब उन्हें इन सब बातों को ज्यादा चर्चा बढ़ता देख वहां पर आकर बोली, ” देखो बेटा , जगन्नाथ मिश्रा क्यों कर रहा था ? ऐसा इसका क्या कारण है! मुझे नहीं लगता है कि अब इसे जानने की जरूरत है क्योंकि हम लोगों ने यह लड़ाई जीत ली है और वह औंधे से मुंह गिरा है।”
“सॉरी मां। अब हम इस पर बात नहीं करेंगे।” निशांत ने कहा।
किचन के अंदर से आदिति आवाज दी, “खाना गर्म हो गया है। मैं निकाल दूं?”
“नहीं। खाने का मन नहीं है । सोच रहा हूं इस जीत के खुशी में एक छोटी सी पार्टी रख लूं। वैसे भी इस केस के चक्कर में कई दिनों से काफी परेशान था।”
निशांत कुर्सी से उछलता हुआ बोला, “अरे वाह! क्या बात कही है भैया। क्यों ना पार्टी की तैयारी शुरू किया जाए?”
“हां…हां.., क्यों नहीं!” अर्जुन ने कहा।
आदित्य मजा लेते हुए कहा, “निशांत आप चाहो तो दीपा को भी बुला लो।”
अर्जुन हां में हां मिलाते हुए कहा, ” हां… हां, उन्हें भी बुला लो। वह भी रहेंगी तो अच्छा लगेगा।”
निशांत ने झेंपते हुए कहा, “नहीं भैया, वह नहीं आ पाएंगी। उसके भैया घर पर ही है और उसे कॉलेज के कुछ काम भी करना है इसीलिए वह नहीं आ सकती।”
सभी लोग समझ जाते हैं कि वह जानबूझकर मना कर रहा है। पार्टी की तैयारी शुरू हो गई थी। रेस्टोरेंट से खाने मंगवा लिए गए थे। उसके साथ में बीयर की कुछ बोतलें भी मंगवा ली गई थी। घर के गार्डन में LG का म्यूजिक सिस्टम लगवा दिए गए थे। धीमी आवाज में गाने बज रहे थे। पार्टी में आदिति, अर्जुन, निशांत और उसकी मां के अलावा कोई और नहीं था।
आदिती निशांत को छोड़ते हुए बोली, “छोटे बाबू अभी भी समय है। आप चाहे तो दीपा को बुला सकते हैं। वह आ जाएंगी तो पार्टी का रौनक और बढ़ जाएगी।”
निशांत बस मुस्कुरा कर रह गया। गार्डन में खाने के लिए टेवल लग चुकी थी। जिस पर बाहर से मंगाये गए खाने अच्छे से सजा कर रख दिया गया था। सभी लोग खाने के लिए टेबल पर बैठ चुके थे और एंजॉय कर रहे थे।
अर्जुन भैया बीयर की बोतल खोलते हुए निशांत को बियर ऑफर किए मगर निशांत ने मना कर दिया। क्योंकि वह जानता था कि आज पी लिया तो यह इमेज हमेशा के लिए घरवालों के नजर में छप जाएगा इसलिए उसने कहा, “मैं नहीं पीता हूँ। मैं तो बस खाने इंजॉय कर रहा हूं।”
पार्टी लगभग आधे घंटे तक चले चली । खाना खाया और खाने के बाद म्यूजिक पर अपने इस छोटी सी फैमिली के साथ डांस किया। उसके बाद सभी अपने अपने कमरे में चले गए।
अर्जुन अलमीरा से एक मोटी सी फ़ाइल निकालकर उसमें आज के कुछ डाक्यूमेंट्स रख रहने लगा । फाइल में डॉक्यूमेंट रखने के बाद वापस जब उस फाइल को अलमीरा में रखने लगा तब भी एक दूसरा फाइल जमीन पर गिरा। जमीन पर गिरने के कारण उसमें रखें हुए सारे डॉक्यूमेंट, फोटोग्राफ्स गिर जाते हैं।
अर्जुन एक-एक करके सभी डाक्यूमेंट्स वापस फाइल में रखने लगा तभी अचानक उसे एक फोटोग्राफ पर नजर जाता है। इस फोटोग्राफ्स में उसको पिता विपुल पंडित और देवांशु के पिता जगन्नाथ मिश्रा दोनों एक दूसरे के कंधे पर हाथ रख के हंस रहे हैं।
यह फोटो देखकर अर्जुन चौक जाता है। खुद से बड़बड़ाने लगता है, ” नहीं! यह संभव नहीं है। मेरे पिता जगन्नाथ मिश्रा को नहीं जानते थे। और अगर पिताजी जानते थे तो क्या मां उसे नहीं जानती होगी? आखिर क्या राज है जो अब तक छुपाया जा रहा है?”
अर्जुन को बड़बड़ाता देख आदिती पास आकर कहती है, “क्या हुआ क्यों बड़बड़ा रहे हो? सब सही तो है?”
अर्जुन बिना कुछ बोले फोटोग्राफ आदिति के तरफ बढ़ा दिया। अगले कुछ मिनट बाद आदिति, निशान्त, अर्जुन , और मां भी एक ही कमरे में खड़े थे।
निशांत की माँ उस फोटोग्राफ्स को अपने हाथ में लिए हुए कहा, “बेटा तुम्हारे पिताजी बहुत फेमस इंसान थे। हो सकता है, यह जगन्नाथ मिश्रा कभी तुम्हारे पिताजी के साथ फोटो खिंचवाया हो और वह फोटो तुम्हारे पिता को पसंद आया हो और वो अपने पास ले आये हों।”
निशांत अपनी मां के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। उसने पूछा , “लेकिन मां, पापा इतने ही फेमस थे तो फिर किसी अनजान आदमी का फोटो वो अपने पास क्यों रखेंगे? यह हो सकता है जगन्नाथ मिश्रा पापा के दोस्त होंगे या फिर जगन्नाथ मिश्रा भी उन्हीं के जैसा कोई फेमस व्यक्ति होगा।
अर्जुन मां के पास आकर कहा, “मां क्या तुम कुछ छुपा रहे ? ऐसा क्या राज है जो आप हम लोगों से छुपाना चाहते हैं?”
“नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है। अब पुरानी बातें तो याद भी नहीं है हो सकता है दोनों किसी बिजनेस के सिलसिले से मुलाकात किए हो।”
अर्जुन अपने मां का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रखते हुए कहता है, “मां, आप कसम खा कर कहिये की आप जो बता रहे हैं वो सच है। बताओ मां पिताजी और जगन्नाथ मिश्रा में क्या संबंध था?”
मां कुछ मिनट तक शांत और मौन रहती है। उसके बाद मां ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “बेटा मुझे माफ कर दो। मैंने तुम लोगों से एक बहुत बड़ी बात छुपा रखी है। इसे छुपाने के कई कारण है। मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें उस तरह की परेशानी को सामना करना पड़े जैसे तुम्हारे पिता जी किया है। इसीलिए मैं सबको पुरानी बातों को अपने अंदर दबा के रखा है।”
यह सुनकर अर्जुन , आदिति और निशान सब पास आ गए और मां को देखने लगे । मां कुछ देर तक शांत रहती है।
निशांत कहता है, “आखिर वह कौन सी बात है जिसे अब तक आपने हम लोगों से छुपा कर रखी है?”
मां कहती है, “तुम्हारे पिताजी और जगन्नाथ मिश्रा दोनों अच्छे दोस्त थे। दोनों साथ में पढ़ाई किए थे। तुम्हारे पिताजी अपने बिजनेस शुरू करने के लिए अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर बिजनेस शुरू करने की कोशिश कर रहे थे। एक दिन जगन्नाथ मिश्रा तुम्हारे पिता जी के पास आकर साथ बिजनेस करने की बात रखी। तुम्हारे पिताजी भी सहमत हो गए और दोनों मिलकर कंपनी शुरू करने का प्लान करने लगे।”
25 साल पहले
निशांत के पिता विपुल पंडित और देवांशु के पिता जगन्नाथ मिश्रा दोनों एक ऑफिस में बैठकर फंडिंग लेने की कोशिश कर रहे थे। वहां कुछ इन्वेस्टर लोग भी बैठे थे।
विपुल पंडित ने इन्वेस्टर से कहा, “सर आप मेरा प्रोजेक्ट देख लीजिये। अगले 2 साल के अंदर हमारी कंपनी 15 परसेंट प्रॉफिट जनरेट करना शुरू कर देगा इस हिसाब से आपके पैसे अगले 3 सालों में हम ब्याज सहित वापस कर देंगे।”
एक मोटे ताजे आदमी जो इन्वेस्टर था। उसने कहा, “देखिए पंडित जी हमने आपकी प्रोजेक्ट देखी है। और आपकी प्रोजेक्ट भी काफी अच्छी है। आपकी ये नई कंपनी है और आप लोग को पहले से इतने बड़ी कम्पनी रन करने की अनुभव नही है। जिसके वजह से हम पैसा नहीं दे सकते। क्योंकि हम ऐसे व्यक्ति को पैसे नही दे सकते जिन्हें कंपनी चलाने की अनुभव नहीं हो। मुझे माफ करें।”
जगन्नाथ मिश्रा कहता है, “सर आप हम पर विश्वास करके देखिए। हम आपको एक्स्ट्रा ब्याज भी देने के लिए तैयार है। अगर आप चाहे तो यह डील done कर सकते हैं। “
“सॉरी मिश्रा जी। हम आप लोग को फंडिंग नहीं कर रहे हैं।”
इतना कह कर वे लोग केबिन से बाहर निकल जाते हैं और दोनों वहीं पर बैठे अपना माथा पकड़ लेते हैं।
कुछ देर बाद जगन्नाथ मिश्रा कहता है, “यार छोड़ो यह इन्वेस्टर के चक्कर। चलो किसी बैंक में ट्राई करते हैं। शायद वो लोग पैसे दे दे।”
“मिश्रा तुम्हें पता होना चाहिए कि हमने लगभग हर बैंक में जाकर पैसे लेने की कोशिश किए हैं मगर कोई भी पैसे देने के लिए राजी नहीं हुआ है।”
“एक बैंक बचा हुआ है , स्टेट कॉरपोरेशन बैंक। मुझे लगता है यहां से पैसा मिल जाएगी।”
“चलो फिर यहां भी ट्राई करते हैं।” विपुल पंडित ने कहा।
दोनों बैंक में चले गए। बैंक में काफी भीड़ थी। कई लोग पैसे जमा करने के लिए आए हुए हैं तो कई लोग पैसे निकालने के लिए ।
विपुल पंडित मैनेजर के केबिन में जाते हुए कहा, “गुड मॉर्निंग सर।”
“गुड मॉर्निंग। कहिए मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं।”
विपुल पंडित अपने बैग से प्रोजेक्ट का डाक्यूमेंट्स निकाल कर देते हुए कहता है, “सर हम टाइल्स मैन्युफैक्चरिंग की कंपनी शुरू कर रहे है और मेरे पास जितने भी फंड थी हम दोनों मिलकर लगा दिए हैं। लेकिन हमें अभी और पैसे की जरूरत है। अगर आपके बैंक से हमें लोन मिल जाती है तो हम इस कंपनी को जल्द ही शुरू कर सकते हैं।”
मैनेजर प्रोजेक्ट लेता है। पूरे गौर से प्रोजेक्ट को देखता है और कहता है, “प्रोजेक्ट तो अच्छी है। आप लोगों को कितने लोन की आवश्यकता है?”
विपुल पंडित कहता है , “सर 50 लाख रु चाहिए।”
“इतने पैसे तो मैं नहीं दे पाऊंगा क्योंकि आपकी कंपनी अभी स्टार्टिंग पीरियड में है या यूं कह लीजिए आपने अभी उस जगह पर सेड ही बनाना शुरू किया है। इतना पैसा आपको बैंक्स से नहीं मिल सकता है।”
जगन्नाथ मिश्रा कहता है, “सर हम आपके पास बहुत उम्मीद से आए थे। अगर आप पैसे नहीं देंगे तो हमारी कंपनी शुरू होने से पहले ही बंद हो जाएगी । हम दोनों ने अपनी सारी जमा पूंजी इसमें लगा दिए हैं। प्लीज सहायता कीजिए।”
कुछ देर केबिन में शांति छाई रहती है। फिर कुछ देर बाद चुपी तोड़ता हुआ मैनेजर कहता है, ” मैं आप लोगों को 50 लाख रु क्या ! 70 लाख रु का कर्ज दे सकता हूं। मगर आप लोगों को बैंक के अलावे एक मेरा पर्सनल शर्त भी मानना होगा।”
विपुल पंडित कहा, “… और आपका पर्सनल शर्त क्या होगा ?
मैनेजर हंसता हुआ करता है, “पंडित जी, आप तो बड़ा जल्दी में हैं। बताता हूं । वो यह है की …।
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